पंडित श्यामानंद जी महाराज, वृंदावन
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बृज की जीवनरेखा है यमुना नदी, जो लगभग 100 मील की दूरी तक टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होकर बहती है। यह केवल जलधारा नहीं, बल्कि कृष्ण-लीला की साक्षात साक्षी है।

पथवाह नदी, जो अलीगढ़ से निकलकर सादाबाद होती हुई आगरा में यमुना से मिलती है। करबन नदी, जो बृज की हरियाली और जीवन को सिंचित करती है।

उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित हैं अरावली पर्वत की पहाड़ियाँ, जो बृज के प्राकृतिक सौंदर्य को अनुपम बनाती हैं। बृज के प्रमुख पर्वतों में उल्लेखनीय हैं:
चरण पहाड़ी (लगभग 400 गज लंबी)
नंदगांव की पहाड़ी (मथुरा से लगभग छह मील दूर)
गिरिराज पर्वत (लंबाई पाँच मील)
बरसाना का ब्रह्मांचल पर्वत, जहाँ राधारानी की स्मृति बसती है।
यह पर्वत न केवल भौगोलिक संरचनाएँ हैं, बल्कि इनकी चोटी-चोटी पर राधा-कृष्ण की अमर लीलाएँ अंकित हैं।
मथुरा और वृंदावन मथुरा को भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली कहा जाता है, लेकिन यह केवल एक जन्मस्थान नहीं, एक संपूर्ण वैष्णव आध्यात्मिक क्रांति का मेरुदंड रहा है। 16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान हुए वैष्णव आंदोलन ने इसे धर्म और भक्ति का केंद्र बना दिया।
वृंदावन में हर कदम पर एक तीर्थ है, हर वृक्ष, हर कुंज, हर सरोवर — सब किसी ना किसी रास-लीला का जीवंत प्रमाण हैं। यहाँ के संत, विशेषकर सूरदास, नंददास, हित हरिवंश जी, और रसखान जैसे महात्माओं ने बृज भूमि को अपने साहित्य और साधना से अनुपम बनाया।
सूरदास जी लिखते हैं:
“चौरासी कोस निरंतर खेलत है बाल मोहन”
इससे स्पष्ट होता है कि बृज भूमि एक वन यात्रा भी है, एक भक्ति यात्रा भी।
प्रकृति और परमात्मा का दिव्य संगम
बृज केवल एक स्थान नहीं, यह एक अनुभव है, एक जीवन दर्शन है। यहाँ की मिट्टी, जल, वायु, पर्वत और वृक्ष — सब कृष्णमय हैं। मथुरा मंडल धाम वह भूमि है जहाँ प्रकृति भी भक्ति में लीन है और जहाँ हर जीवात्मा को परमात्मा के निकट पहुँचने का सीधा मार्ग मिल सकता है।
जो एक बार इस भूमि की रज में लोट लेता है, वह जीवन भर उस दिव्यता को महसूस करता है।